Shayrana
Shayrana si hai Zindgi ki Fiza
चन्द लम्हों के लिए एक मुलाक़ात रही, फिर ना वो तू, ना वो मैं, ना वो रात रही।
कंजूस कोई जैसे गिनता रहे सिक्कों को, ऐसे ही मैं यादों के लम्हात बरतता हूँ ।