Shayrana
Shayrana si hai Zindgi ki Fiza
सूरज ढला तो कद से ऊँचे हो गए साये, कभी पैरों से रौंदी थी, यहीं परछाइयां हमने..
वो चांदनी का बदन ख़ुशबुओं का साया है बहुत अज़ीज़ हमें है मगर पराया है