Unhe dekha gaya khilte kamal tak

उन्हें देखा गया खिलते कमल तक,
कोई झाँका नहीं झीलों के तल तक। 

तो परसों, फिर न उसकी राह तकना, 
जो भूला आज का, लौटा न कल तक। 

न जाने, कब समन्दर आ गए हैं, 
हमारी अश्रु-धाराओं के जल तक। 

सियासत में उन्हीं की पूछ है अब, 
नहीं सीमित रहे जो एक दल तक। 

यही तो टीस है मन में लता के, 
हुई पुष्पित, मगर, पहुँची न फल तक। 

हजारों कलयुगी शंकर हैं ऐसे- 
पचाना जानते हैं जो गरल तक। 

जो बारम्बार विश्लेषण करेगा, 
पहुँच ही जाएगा वो ठोस हल तक।

Zaheer quraishi

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