Ye din bahar ke ab ke bhi raas na aa sake

ये दिन बहार के अब के भी रास न आ सके 
कि ग़ुंचे खिल तो सके खिल के मुस्कुरा न सके 

मिरी तबाही ए दिल पर तो रहम खा न सके 
जो रोशनी में रहे रोशनी को पा न सके 

न जाने आह कि उन आँसूओं पे क्या गुज़री 
जो दिल से आँख तक आये मिज़ा तक आ न सके 

रह-ए-ख़ुलूस-ए-मुहब्बत के हादसात-ए-जहाँ 
मुझे तो क्या मेरे नक़्श-ए-क़दम मिटा न सके

करेंगे मर के बक़ाए-दवाम क्या हासिल 
जो ज़िंदा रह के मुक़ाम-ए-हयात पा न सके 

नया ज़माना बनाने चले थे दीवाने 
नई ज़मीं नया आसमाँ बना न सके

Jigar moradabadi

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