Kaha maine kitna hai gul ka sabaat

कहा मैंने कितना है गुल का सबात
कली ने यह सुनकर तब्बसुम किया

जिगर ही में एक क़तरा खूं है सरकश
पलक तक गया तो तलातुम किया

किसू वक्त पाते नहीं घर उसे
बहुत ‘मीर’ ने आप को गम किया

-Mir Taqi Mir