Likh diya apne dar pe kisi ne

लिख दिया अपने दर पे किसी ने, इस जगह प्यार करना मना है
प्यार अगर हो भी जाए किसी को, इसका इज़हार करना मना है

उनकी महफ़िल में जब कोई आये, पहले नज़रें वो अपनी झुकाए
वो सनम जो खुदा बन गये हैं, उनका दीदार करना मना है

जाग उठ्ठेंगे तो आहें भरेंगे, हुस्न वालों को रुसवा करेंगे
सो गये हैं जो फ़ुर्क़त के मारे, उनको बेदार करना मना है

हमने की अर्ज़ ऐ बंदा-परवर, क्यूँ सितम ढा रहे हो यह हम पर
बात सुन कर हमारी वो बोले, हमसे तकरार करना मना है

सामने जो खुला है झरोखा, खा न जाना क़तील उसका धोखा
अब भी अपने लिए उस गली में, शौक-ए-दीदार करना मना है

Qateel shifai

Dil ko gham e hayat gawara hai in dinon

दिल को ग़म-ए-हयात गवारा है इन दिनों
पहले जो दर्द था वही चारा है इन दिनों

हर सैल-ए-अश्क़ साहिल-ए-तस्कीं  है आजकल
दरिया की मौज-मौज किनारा है इन दिनों

यह दिल ज़रा-सा दिल तेरी आँखों में खो गया
ज़र्रे को आँधियों का सहारा है इन दिनों

शम्मओं में अब नहीं है वो पहली-सी रौशनी
शायद वो चाँद अंजुमन-आरा है इन दिनों

तुम आ सको तो शब को बढ़ा दूँ कुछ और भी
अपने कहे में सुबह का तारा है इन दिनों

क़ुर्बां हों जिसके हुस्न पे सौ जन्नतें ‘क़तील’
नज़रों के सामने वो नज़्ज़ारा है इन दिनों

Qateel shifai

Patthar use na jaan pighalta bhi dekh use

पत्थर उसे न जान पिघलता भी देख उसे
ख़ुद अपने तर्ज़ुबात में जलता देख उसे

वो सिर्फ़ जिस्म ही नहीं एहसास भी तो है 
रातों में चाँद बन के निकलता भी देख उसे 

वो धडकनों के शोर से भी मुतमइन न था 
अब चंद आहटों से भी बहलता देख उसे

आ ही पड़ा है वक़्त तो फैला ले हाथ भी
और साथ-साथ आँख बदलता भी देख उसे

सूरज है वो तो उसकी परस्तिश ज़रूर कर
साया है वो तो शाम को ढलता भी देख उसे

निकला तो है क़तील वफ़ा की तलाश में
ज़ख्मों के पुल-सिरात पे चलता भी देख उसे

Qateel shifai

Namabar apna hawaon ko banane wale

नामाबर अपना हवाओं को बनाने वाले
अब न आएँगे पलट कर कभी जाने वाले

क्या मिलेगा तुझे बिखरे हुए ख़्वाबों के सिवा
रेत पर चाँद की तसवीर बनाने वाले

मैक़दे बन्द हुए ढूँढ रहा हूँ तुझको
तू कहाँ है मुझे आँखों से पिलाने वाले

काश ले जाते कभी माँग के आँखें मेरी
ये मुसव्विर तेरी तसवीर बनाने वाले

तू इस अन्दाज़ में कुछ और हसीं लगता है
मुझसे मुँह फेर के ग़ज़लें मेरी गाने वाले

सबने पहना था बड़े शौक़ से काग़ज़ का लिबास
जिस क़दर लोग थे बारिश में नहाने वाले

छत बना देते हैं अब रेत की दीवारों पर
कितने ग़ाफ़िल हैं नये शहर बसाने वाले

अद्ल  की तुम न हमें आस दिलाओ कि यहाँ
क़त्ल हो जाते है ज़‍जीर हिलाने वाले

किसको होगी यहाँ तौफ़ीक़-ए-अना मेरे बाद
कुछ तो सोचें मुझे सूली पे चढ़ाने वाले

मर गये हम तो ये क़त्बे पे लिखा जाएगा
सो गये आप ज़माने को जगाने वाले

दर-ओ-दीवार पे हसरत-सी बरसती है क़तील
जाने किस देस गये प्यार निभाने वाले.

Qateel shifai