Khabar hai dono ko dono se dil lagaoon main

ख़बर है दोनों को, दोनों से दिल लगाऊँ मैं,
किसे फ़रेब दूँ, किस से फ़रेब खाऊँ मैं ।

नहीं है छत न सही , आसमाँ तो अपना है,
कहो तो चाँद के पहलू में लेट जाऊँ मैं ।

यही वो शय है, कहीं भी किसी भी काम में लो,
उजाला कम हो तो बोलो कि दिल जलाऊँ मैं ।

नहीं नहीं ये तिरी ज़िद नहीं है चलने की,
अभी-अभी तो वो सोया है फिर जगाऊँ मैं ।

बिछड़ के उससे दुआ कर रहा हूँ अय मौला,
कभी किसी की मुहब्बत न आज़माऊँ मैं ।

हर एक लम्हा नयापन हमारी फ़ितरत है,
जो तुम कहो तो पुरानी ग़ज़ल सुनाऊँ मैं ।

Ana kasmi

Ye apna milan jaise ek sham ka manzar hai

ये अपना मिलन जैसे इक शाम का मंज़र है,
मैं डूबता सूरज हूँ तू बहता समन्दर है ।

सोने का सनम था वो, सबने उसे पूजा है,
उसने जिसे चाहा है वो रेत का पैकर है ।

जो दूर से चमके हैं वो रेत के ज़र्रे हैं,
जो अस्ल में मोती है वो सीप के अन्दर है ।

दिल और भी लेता चल पहलू में जो मुमकिन हो,
उस शोख़ के रस्ते में एक और सितमगर है ।

दो दोस्त मयस्सर हैं इस प्यार के रस्ते में,
इक मील का पत्थर है, इक राह का पत्थर है ।

सब भूल गया आख़िर पैराक हुनर अपने,
अब झील-सी आँखों में मरना ही मुक़द्दर है ।

अब कौन उठाएगा इस बोझ को किश्ती पर,
किश्ती के मुसाफ़िर की आँखों में समन्दर है ।

Ana kasmi

Dil ki har dhadkan hai battis meel me

दिल की हर धड़कन है बत्तिस मील में ।
वो ज़िले में और हम तहसील में ।

उसकी आराइस  की क़ीमत कैसे दूँ,
दिल को तोला नाक की इक कील में ।

कुछ रहीने मय नहीं मस्ते ख़राम,
सब नशा है सैण्डिल की हील में ।

यार किहकर मेरी सिगरेट खेंच ली 
किस क़दर बिगड़े हैं बच्चे ढील में ।

यक-ब-यक लहरों में दम-सी आ गई,
लड़कियों ने पाँव डाले झील में ।

उम्र अदाकारी में सारी कट गई,
इक ज़रा से झूठ की तावील  में ।

हुक्म कर के देखिएगा तो हुज़ूर,
सर है ह़ाज़िर हुक्म की तामील में ।

सैकड़ों ग़ज़लें मुकम्मल हो गईं,
इक अधूरे शेर की तकमील में ।

Ana kasmi

Khainchi labo ne aah ki sine pe aaya haath

खैंची लबों ने आह कि सीने पे आया हाथ ।
बस पर सवार दूर से उसने हिलाया हाथ ।

महफ़िल में यूँ भी बारहा उसने मिलाया हाथ ।
लहजा था ना-शनास  मगर मुस्कुराया हाथ ।

फूलों में उसकी साँस की आहट सुनाई दी,
बादे सबा ने चुपके से आकर दबाया हाथ ।

यँू ज़िन्दगी से मेरे मरासिम हैं आज कल,
हाथों में जैसे थाम ले कोई पराया हाथ ।

मैं था ख़मोश जब तो ज़बाँ सबके पास थी, 
अब सब हैं लाजवाब तो मैंने उठाया हाथ ।

Ana kasmi