Suna karo meri jaan

सुना करो मेरी जाँ इन से उन से अफ़साने 
सब अजनबी हैं यहाँ कौन किस को पहचाने

यहाँ से जल्द गुज़र जाओ क़ाफ़िले वालों 
हैं मेरी प्यास के फूँके हुए ये वीराने 

मेरी जुनून-ए-परस्तिश से तंग आ गये लोग 
सुना है बंद किये जा रहे हैं बुत-ख़ाने 

जहाँ से पिछले पहर कोई तश्ना-काम उठा 
वहीं पे तोड़े हैं यारों ने आज पैमाने 

बहार आये तो मेरा सलाम कह देना 
मुझे तो आज तलब कर लिया है सेहरा ने 

सिवा है हुक़्म कि “कैफ़ी” को संगसार करो 
मसीहा बैठे हैं छुप के कहाँ ख़ुदा जाने 

Kaifi azmi

Sadiya guzar gai

क्या जाने किसी की प्यास बुझाने किधर गयीं

उस सर पे झूम के जो घटाएँ गुज़र गयीं

दीवाना पूछता है यह लहरों से बार बार

कुछ बस्तियाँ यहाँ थीं बताओ किधर गयीँ

अब जिस तरफ से चाहे गुजर जाए कारवां

वीरानियाँ तो सब मिरे दिल में उतर गयीं

पैमाना टूटने का कोई गम नहीं मुझे

गम है तो यह के चाँदनी रातें बिखर गयीं

पाया भी उन को खो भी दिया चुप भी यह हो रहे

इक मुख्तसर सी रात में सदियाँ गुजर गयीं

Kaifi azmi

Wo bhi sarhane lage arbabe fan ke baad

वो भी सरहाने लगे अरबाबे-फ़न के बाद ।
दादे-सुख़न  मिली मुझे तर्के-सुखन के बाद ।

दीवानावार चाँद से आगे निकल गए
ठहरा न दिल कहीं भी तेरी अंजुमन के बाद ।

एलाने-हक़ में ख़तरा-ए-दारो-रसन  तो है
लेकिन सवाल ये है कि दारो-रसन के बाद ।

होंटों को सी के देखिए पछताइयेगा आप
हंगामे जाग उठते हैं अकसर घुटन के बाद ।

गुरबत की ठंडी छाँव में याद आई है उसकी धूप
क़द्रे-वतन  हुई हमें तर्के-वतन के बाद

इंसाँ की ख़ाहिशों की कोई इंतेहा नहीं
दो गज़ ज़मीन चाहिए, दो गज़ कफ़न के बाद ।

Kaifi azmi

Wo kabhi dhoop kabhi chhanv lage

वो कभी धूप कभी छाँव लगे ।
मुझे क्या-क्या न मेरा गाँव लगे ।

किसी पीपल के तले जा बैठे 
अब भी अपना जो कोई दाँव लगे ।

एक रोटी के त’अक्कुब में चला हूँ इतना 
की मेरा पाँव किसी और ही का पाँव लगे । 

रोटि-रोज़ी की तलब जिसको कुचल देती है
उसकी ललकार भी एक सहमी हुई म्याँव लगे ।

जैसे देहात में लू लगती है चरवाहों को
बम्बई में यूँ ही तारों की हँसी छाँव लगे ।

Kaifi azmi