दिल को ग़म-ए-हयात गवारा है इन दिनों
पहले जो दर्द था वही चारा है इन दिनों
हर सैल-ए-अश्क़ साहिल-ए-तस्कीं है आजकल
दरिया की मौज-मौज किनारा है इन दिनों
यह दिल ज़रा-सा दिल तेरी आँखों में खो गया
ज़र्रे को आँधियों का सहारा है इन दिनों
शम्मओं में अब नहीं है वो पहली-सी रौशनी
शायद वो चाँद अंजुमन-आरा है इन दिनों
तुम आ सको तो शब को बढ़ा दूँ कुछ और भी
अपने कहे में सुबह का तारा है इन दिनों
क़ुर्बां हों जिसके हुस्न पे सौ जन्नतें ‘क़तील’
नज़रों के सामने वो नज़्ज़ारा है इन दिनों
Qateel shifai