Duniya se wafa karke sila dhund rahe hai

दुनिया से वफ़ा करके सिला ढूँढ रहे हैं
हम लोग भी नदाँ हैं ये क्या ढूँढ रहे हैं

कुछ देर ठहर जाईये बंदा-ए-इन्साफ़
हम अपने गुनाहों में ख़ता ढूँढ रहे हैं

ये भी तो सज़ा है कि गिरफ़्तार-ए-वफ़ा हूँ
क्यूँ लोग मोहब्बत की सज़ा ढूँढ रहे हैं

दुनिया की तमन्ना थी कभी हम को भी ‘फ़ाकिर’
अब ज़ख़्म-ए-तमन्ना की दवा ढूँढ रहे हैं

सुदर्शन फ़ाक़िर

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