Kahan wo shokh mulaqat khud se bhi na hui

कहाँ वो शोख़, मुलाक़ात ख़ुद से भी न हुई 
बस एक बार हुई और फिर कभी न हुई 

ठहर ठहर दिल-ए-बेताब प्यार तो कर लूँ 
अब इस के बाद मुलाक़ात फिर हुई न हुई 

वो कुछ सही न सही फिर भी ज़ाहिद-ए-नादाँ 
बड़े-बड़ों से मोहब्बत में काफ़िरी न हुई 

इधर से भी है सिवा कुछ उधर की मजबूरी 
कि हम ने आह तो की उन से आह भी न हुई

Jigar moradabadi

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