आँख मजबूर-ए-तमाशा है ‘फ़राज़’
एक सूरत है कि हरसू चमके
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Hunar
मुझे यकीन है अपने लफ्जो के हुनर पर…
कि लोग मेरा चेहरा भूल सकते है पर शेर नही…
Chehra
अपने चेहरे से जो ज़ाहिर है छुपायें कैसे
तेरी मर्ज़ी के मुताबिक नज़र आयें कैसे
Parakhna mat
परखना मत, परखने में कोई अपना नहीं रहता
किसी भी आईने में देर तक चेहरा नहीं रहता