Shayrana
Shayrana si hai Zindgi ki Fiza
उससे मैं कुछ पा सकूँ ऐसी कहाँ उम्मीद थी ग़म भी वो शायद बरा-ए-मेहरबानी दे गया
कौन दोहराए वो पुरानी बात ग़म अभी सोया है जगाए कौन
अपनी तबाहियों का मुझे कोई गम नहीं तुमने किसी के साथ मुहब्बत निभा तो दी