Teri mehfil me ye kasrat kabhi thi

तेरी महफ़िल में यह कसरत कभी थी
हमारे रंग की सोहबत कभी थी

इस आज़ादी में वहशत कभी थी
मुझे अपने से भी नफ़रत कभी थी

हमारा दिल, हमारा दिल कभी था
तेरी सूरत, तेरी सूरत कभी थी

हुआ इन्सान की आँखों से साबित
अयाँ कब नूर में जुल्मत कभी थी

दिल-ए-वीराँ में बाक़ी हैं ये आसार
यहाँ ग़म था, यहाँ हसरत कभी थी

तुम इतराए कि बस मरने लगा ‘दाग़’
बनावट थी जो वह हालत कभी थी

Daag Dehalvi

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