Paisa to khushamad me mere yaar bahut hai

पैसा तो ख़ुशामद में, मेरे यार बहुत है
पर क्या करूँ ये दिल मिरा खुद्दार बहुत है

इस खेल में हाँ की भी ज़रूरत नहीं होती
लहजे में लचक हो तो फिर इंकार बहुत है 

रस्ते में कहीं जुल्फ़ का साया भी अता हो
ऐ वक़्त तिरे पाँव की रफ़्तार बहुत है

बेताज हुकूमत का मज़ा और है वरना
मसनद  के लिए लोगों का इसरार बहुत है

मुश्किल है मगर फिर भी उलझना मिरे दिल का
ऐ हुस्न तिरी जुल्फ़ तो ख़मदार बहुत है

अब दर्द उठा है तो ग़ज़ल भी है ज़रूरी
पहले भी हुआ करता था इस बार बहुत है

सोने के लिए क़द के बराबर ही ज़मीं बस
साए के लिए एक ही दीवार बहुत है

Usko number de ke meri

उसको नम्बर देके मेरी और उलझन बढ़ गई
फोन की घंटी बजी और दिल की धड़कन बढ़ गई

इस तरफ़ भी शायरी में कुछ वज़न-सा आ गया
उस तरफ़ भी चूड़ियों की और खन-खन बढ़ गई

हम ग़रीबों के घरों की वुसअतें मत पूछिए
गिर गई दीवार जितनी उतनी आँगन बढ़ गई

मशवरा औरों से लेना इश्क़ में मंहगा पड़ा
चाहतें क्या ख़ाक बढ़तीं और अनबन बढ़ गई

आप तो नाज़ुक इशारे करके बस चलते बने
दिल के शोलों पर इधर तो और छन-छन बढ़ गई

Ana kasmi

Usko number de ke meri

उसको नम्बर देके मेरी और उलझन बढ़ गई
फोन की घंटी बजी और दिल की धड़कन बढ़ गई

इस तरफ़ भी शायरी में कुछ वज़न-सा आ गया
उस तरफ़ भी चूड़ियों की और खन-खन बढ़ गई

हम ग़रीबों के घरों की वुसअतें मत पूछिए
गिर गई दीवार जितनी उतनी आँगन बढ़ गई

मशवरा औरों से लेना इश्क़ में मंहगा पड़ा
चाहतें क्या ख़ाक बढ़तीं और अनबन बढ़ गई

आप तो नाज़ुक इशारे करके बस चलते बने
दिल के शोलों पर इधर तो और छन-छन बढ़ गई

Bacha hi kya hai hayat me ab

बचा ही क्या है हयात में अब सुनहरे दिन तो निपट गए हैं
यही ठिकाने के चार दिन थे सो तेरी हां हूं में कट गए हैं

हयात ही थी सो बच गया हूँ वगरना सब खेल हो चुका था
तुम्हारे तीरों ने कब ख़ता की हमीं निशाने से हट गए हैं

हरेक जानिब से सोच कर ही चढ़ाई जाती हैं आस्तीनें
वो हाथ लम्बे थे इस क़दर के हमारे क़द ही सिमट गए हैं

हमारे पुरखों की ये हवेली अजीब क़ब्रों-सी हो गई है
थे मेरे हिस्से में तीन कमरे जो आठ बेटों में बट गए हैं

मुहब्बतों की वो मंज़िलें हों, के जाहो-हशमत की मसनदें हों
कभी वहाँ फिर न मुड़ के देखा क़दम जहाँ से पलट गए हैं

बड़े परीशा हैं ऐ मुहासिब तिरे हिसाबो-किताब से हम
किसे बताएँ ये अलमिया अब, कि ज़र्ब देने पे घट गए हैं 

मैं आज खुल कर जो रो लिया हूँ तो साफ़ दिखने लगे हैं मंज़र
ग़मों की बरसात हो चुकी है वो अब्र आँखों से छँट गए हैं

वही नहीं एक ताज़ा दुश्मन, सभी को मिर्ची लगी हुई है
हमें क्या अपना बनाया तुमने, कई नज़र में खटक गए हैं

Ana kasmi