Bekhudi kahan le gai humko

बेखुदी कहाँ ले गई हमको,

देर से इंतज़ार है अपना

रोते फिरते हैं सारी सारी रात,

अब यही रोज़गार है अपना

दे के दिल हम जो गए मजबूर,

इस मे क्या इख्तियार है अपना

कुछ नही हम मिसाल-ऐ- उनका लेक

शहर शहर इश्तिहार है अपना

जिसको तुम आसमान कहते हो,

सो दिलो का गुबार है अपना

Mir taqi mir

Ashk aakhon main kab nahi aata

अश्क आंखों में कब नहीं आता 
लहू आता है जब नहीं आता। 

होश जाता नहीं रहा लेकिन
जब वो आता है तब नहीं आता। 

दिल से रुखसत हुई कोई ख्वाहिश
गिरिया कुछ बे-सबब नहीं आता।

इश्क का हौसला है शर्त वरना
बात का किस को ढब नहीं आता। 

जी में क्या-क्या है अपने ऐ हमदम
हर सुखन ता बा-लब नहीं आता।

Aaye hai mir muh ko banaye

आए हैं मीर मुँह को बनाए जफ़ा से आज
शायद बिगड़ गयी है उस बेवफा से आज

जीने में इख्तियार नहीं वरना हमनशीं
हम चाहते हैं मौत तो अपने खुदा से आज

साक़ी टुक एक मौसम-ए-गुल की तरफ़ भी देख
टपका पड़े है रंग चमन में हवा से आज

था जी में उससे मिलिए तो क्या क्या न कहिये ‘मीर’
पर कुछ कहा गया न ग़म-ए-दिल हया से आज

Chalte hai to chaman ko chaliye

चलते हो तो चमन को चलिये, कहते हैं कि बहाराँ है
पात हरे हैं, फूल खिले हैं, कम कम बाद-ओ-बाराँ है

रंग हवा से यूँ टपके है, जैसे शराब चुवाते हैं
आगे हो मैख़ाने के निकलो, ‘अहद-ए-बाद: गुसाराँ है

इश्क़ के मैदाँ-दारों में भी, मरने का है वस्फ़ बहुत
यानी मुसीबत ऐसी उठाना, कार-ए-कार-गुज़ाराँ है

दिल है दाग़ जिगर है टुकड़े आँसू सारे ख़ून हुए

लोहु-पानी एक करे ये, इश्क़-ए-लाल:-अज़ाराँ है

कोहकन-ओ-मजनूँ की ख़ातिर, दश्त-ओ-कोह में हम न गए

‘इश्क़ में हमको मीर, निहायत पास-ए-इज़्ज़त-दाराँ है
-मीर तक़ी मीर